साधू के वेश में डकैत
व्यापारी का तम्बू में लौटना
फिर हिम्मत कर व्यापारी अपना थैला लेने वापस तंबू में आया। और यह क्या? अपनी आँखों से सच्चाई देख कर वह स्तब्ध था। जिस साधु को उसने अपना थैला दिया था वह साधू तो डाकूओं की टोली का सरदार था। लूट के धन को वह दूसरे डाकूओं को बाँट रहा था। यह सब देख व्यापारी वहाँ से निराश होकर वापस जाने लगा। वह मुड़ मुड़ कर तम्बू की तरफ देख रहा था और ठगा सा महसूस कर रहा था । मगर उस साधू ने व्यापारी को जाते देख लिया था और बाहर आकर उसने कहा “रूको, तुमने जो धन का थैला मुझे दिया था वह ज्यों की त्यों ही है”। और साधु ने व्यापारी का धन से भरा थैला वापिस कर दिया। अपने धन को सलामत देखकर व्यापारी ख़ुशी से गद-गद हो गया और साधु को दान देने की इच्छा जाहिर की। परन्तु साधु ने मना कर दिया और हाथ जोड़ कर नमस्कार कर तम्बू की और चला गया। व्यापारियों का झुण्ड भी ख़ुशी ख़ुशी अपने सुंदरनगर की ओर चल पड़ा।
डाकू का हृदय परिवर्तन
सरदार तम्बू में वापिस लौटा तब वहाँ बैठे अन्य डाकूओं ने सरदार से पूछा कि हाथ में आये धन को इस प्रकार क्यों जाने दिया। तभी सरदार ने कहा, “व्यापारी मुझे भगवान का भक्त जानकर भरोसे के साथ थैला दे गया था, उसी कर्तव्यभाव से मैंने उसके थैले को वापस दे दिया”। किसी के विश्वास को तोड़ने से सच्चाई और ईमानदारी हमेशा के लिए शक के घेरे में आ जाती है। बिलकुल वैसे ही जैसे राज्य की सुविधा यहाँ न पहुँच पाने की वजह से हमारा राज्य से विश्वास उठ गया और हम सच्चाई और ईमानदारी के रास्ते से भटक गए। परन्तु आज व्यापारी की बात सुन कर एहसास हुआ की हम राज्य की सुविधा यहाँ तक नहीं पहुँच पाने का दंड सच्चाई और ईमानदारी से धन प्राप्त कर रहे लोगो को उनका धन लूट कर देते हैं और यह गलत है। आज से हम सब मिलकर मेहनत करेंगे और अपने साथ साथ सभी वंचित लोगों की सहायता भी करेंगे। सब सरदार की बात से सहमत हुए और डकैती छोड़ कर ईमानदारी से धन कमाने की प्रतिज्ञा ली।
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